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परमात्मा साकार है | वेद

वेद / परमात्मा साकार है | वेद

परमात्मा साकार है | वेद

यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1

अग्नेः तनूः असि। विष्णवे त्वा सोमस्य तनूः असि। विष्णवे त्वा अतिथेः अतिथ्यम् असि। विष्णवे त्वा श्येनाय, त्वा सोम भृते विष्णवे त्वा अग्नये त्वा रायः पोषदे विष्णवे त्वा। (1)

अनुवाद:- इस मंत्र में परमेश्वर की दो स्थितियों का वर्णन है। एक स्थिति में परमेश्वर ऊपर के लोकों में तेजोमय शरीर युक्त है। दूसरी स्थिति में परमेश्वर ऋषि या संत की वेशभूषा में साधारण व्यक्ति की तरह शरीर धारण करके सर्व आत्माओं को संभालता है।

जैसे अतिथि अर्थात् मेहमान आता है। अतिथि का भावार्थ है कि जिसके आने की तिथी पूर्व निर्धारित न हो। उस परमात्मा के अतिथि रूप में आने की भी दो स्थिति हैं जैसे:-

1) परमात्मा कुछ समय संसार में रहकर आम व्यक्ति की तरह जीवन जीकर अपना तत्वज्ञान प्रचार करता है

जैसे परमेश्वर कबीर रूप से प्रकट होकर बनारस (काशी) शहर में 120 वर्ष रहे। अचानक कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए फिर लीलावत् बड़े हुए 120 वर्ष संसार में अतिथि रूप में रहकर सशरीर सतलोक में {अपने निज स्थान में} चले गए।

दूसरी स्थिति निम्न है। 

2) परमात्मा संत या ऋषि रूप में या अन्य साधारण मानव रूप में प्रकट होते हैं

‘‘परमात्मा अचानक संत या ऋषि रूप में या अन्य साधारण मानव रूप में प्रकट होकर अपने विशेष भक्त को दर्शन देते हैं। उसको तत्वज्ञान समझाते हैं तथा अपने सत्यलोक के दर्शन करवा के वापिस छोड़ देते हैं। फिर वह परम भक्त उस पूर्ण परमात्मा की आँखों देखी महिमा का वर्णन करता है। इसको बाज पक्षी या अलल पक्षी की तरह क्रिया बताई है। जैसे बाज पक्षी अति शीघ्रता से अन्य पक्षी पर झपटता है उसे लेकर शीघ्र चला जाता है। इसी प्रकार एक अलल (वायु में आकाश में रहने वाला) पक्षी से तुलना की है। जो शीध्र नीचे आता है तथा हाथियों को उठाकर शीघ्र वापिस आकाश में चला जाता है।

जैसे परमात्मा अचानक प्रकट होकर संत नानक जी को बेई नदी पर मिले। सच्चखंड अर्थात् सतलोक के दर्शन करवा के तीसरे दिन अचानक पृथ्वी पर छोड़ दिया। उसके पश्चात् संत नानक साहेब जी ने पूर्ण परमात्मा की महिमा का आँखों देखा गुणगान किया। जो उनकी अमृतवाणी में गुरू ग्रंथ साहेब में महला-पहला में विद्यमान है।

इसी प्रकार सन् 1727 में संत गरीबदास जी को गाँव-छुड़ानी जिला-झज्जर (हरियाणा प्रांत) में ‘‘नला’’ नामक खेत में परमेश्वर जिंदा महात्मा (एक संत) के रूप में मिले। सतलोक दिखाकर उसी दिन वापिस पृथ्वी पर छोड़ दिया। उसके पश्चात् संत गरीबदास साहेब जी ने परमात्मा की महिमा का आँखों देखा विवरण वर्णन किया। जो उनकी अमृतवाणी में सद्ग्रंथ ‘‘वाणी गरीबदास’’ में विद्यमान है।

इसी प्रकार संत दादू साहेब जी को मिले। संत मलूक दास साहेब जी को मिले। संत धर्मदास साहेब जी को मिले। संत घीसा दास साहेब जी को मिले। हजरत मुहम्मद साहेब जी को मिले। राजा अब्राहिम अधम सुल्तान जी को मिले। अन्य बहुत से महात्माओं को पूर्ण प्रभु अतिथि रूप में दूसरी विधि से मिले तथा अपना यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान (तत्वज्ञान) का प्रचार किया तथा अपनी आत्माओं का कल्याण किया। आचार्य स्वामी रामानंद जी को मिले तथा उनको सत्यलोक के दर्शन करवाए। आचार्य स्वामी रामानंद जी ने आँखों देखकर पूर्ण परमेश्वर कबीर जी की महिमा का वर्णन किया।

दोहू ठोर है एक तू भया एक से दो। हे कबीर हम कारणे आये हो मग जोय।

स्वामी रामानंद जी ने कहा है कबीर परमेश्वर आप ऊपर तेजोमय शरीर में तथा यहाँ दोनों स्थानों पर आप ही हैं। हमारे लिए आप इतना रास्ता चल कर आए हैं।

(अग्नेः) स्वप्रकाशित परमेश्वर (तनूः) सशरीर (असि) है अर्थात् परमेश्वर तेजोमय शरीर सहित है। (विष्णवे) पालन-पोषण करने के लिए अर्थात् सर्व लोकों की आत्माओं की आवश्यकता पूर्ति के लिए (त्वा) उस (सोमस्य) अमर पुरूष का अर्थात् अविनाशी परमात्मा का (तनूः) शरीर (असि) है। सोमपुरूष अर्थात् अमर प्रभु तीनों लोकों में प्रवेश करके सर्व का पालन-पोषण करता है। वह अतिथि रूप में प्रवेश करता है। अर्थात् अचानक प्रकट होता है। {जिस किसी के आने की तिथि पूर्व निर्धारित न हो, उसको अतिथि अर्थात् महमान कहते हैं।} (त्वा) उस परमेश्वर का (विष्णवे) तीनों लोकों में प्रवेश करके पालन-पोषण करने के लिए आगमन होता है। (अतिथे) अतिथि रूप में प्रकट परमेश्वर (अतिथ्यम्) अतिथियन अर्थात् पूजा के योग्य (असि) है। (त्वा) उस परमात्मा का आगमन (विष्णवे) पालन करने के लिए (सोमभृते) अमर सुख प्रदान करने के लिए अर्थात् पूर्ण मोक्ष मार्ग प्रदान करके भक्ति रूपी अमृत से परिपूर्ण करने के लिए दो प्रकार से होता है। एक तो (त्वा) उस परमात्मा का आगमन (विष्णवे) कुछ समय संसार में व्यापक होने के लिए अर्थात् संसार में मानव की तरह लीला करके जीवन जीकर पुण्यात्माओं को तत्वज्ञान प्रदान करने के लिए तथा सर्व सुविधाएँ प्रदान करने के लिए होता है। जैसे परमेश्वर चारों युगों में लीला करने के लिए शिशु रूप से प्रकट होकर समय अनुसार साधारण व्यक्ति की तरह वृद्धि को प्राप्त हो करके कुछ समय संसार में रहता है। कलयुग में पूर्ण परमात्मा कबीर नाम से काशी शहर में कमल के फूल पर सन् (इ.स.) 1398 को प्रकट हुए तथा 120 वर्ष तक संसार में रहे फिर सशरीर सतलोक लौट गए। दूसरी तरह (त्वा) उस परमात्मा का आगमन (श्येमान) श्येन पक्षी की तरह शीघ्र लौट जाने के लिए होता है। जैसे बाज पक्षी व अलल पक्षी अपने अहार के लिए अन्य प्राणियों पर शीध्रता से झपटता है तथा उसे दबोचकर शीघ्रता से लौट जाता है। इसी प्रकार दूसरी स्थिति में परमात्मा अज्ञान निंद्रा में सोए हूओं को जगाने के लिए अचानक प्रकट होता है। अपने विशेष भक्त को तत्वज्ञान उपदेश देता है। उसको अपने साथ अपने निजधाम सतलोक में ले जाता है। वहाँ का सर्व दृश्य दिखाकर भक्त को पुनः पृथ्वी लोक पर छोड़ देता है। उसके पश्चात् वह परमात्मा प्राप्त भक्त परमात्मा की आँखों देखी महिमा का वर्णन करता है। जैसे संत नानक जी को बेई नदी पर मिले। उन्हें सचखंड अर्थात् सत्यलोक ले गए। तीन दिन पश्चात् उसी नदी पर वापिस छोड़ दिया। जैसे संत गरीबदास जी से गाँव छुड़ानी जिला-झज्जर हरियाणा प्रांत में मिले तथा उन्हंे सत्यलोक लेकर गए तथा कुछ ही घंटों के पश्चात् पुनः पृथ्वी पर छोड़ दिया। उपरोक्त दोनों महात्माओं ने परमेश्वर की महिमा का आँखों देखा हाल वर्णन किया। जो उन दोनों संतों की अमृत वाणी में विद्यमान है। (त्वा) उस समर्थ परमेश्वर की लीलाएँ है जो वह (अग्नये) स्वप्रकाशित रहने के लिए लीला करता है। (त्वा) उसका (विष्णवे) सर्व लोकों में प्रवेश करके पालन-पोषण करने के लिए आगमन होता है। (रायः पोषदे) वह कुल मालिक ही सर्व का पालन कर्ता है। सर्व लीलाएँ अपने प्राणियों की समृद्धि के लिए ही करता है।


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