श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संत कबीर जी की वाणी का महत्वपूर्ण स्थान है। कबीर जी ने अपने दोहों और शबदों के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों और आडंबरों का खुलासा किया है। उनकी वाणी में मांसाहार के विषय में भी स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। कबीर जी ने मांसाहार को कड़ी निंदा करते हुए इसे आध्यात्मिकता और करुणा के मार्ग में एक बड़ी बाधा बताया है।
कबीर जी की वाणी में यह संदेश दिया गया है कि मांसाहार केवल हिंसा और क्रूरता को बढ़ावा देता है, जो ईश्वर के सच्चे भक्त के लिए उचित नहीं है। उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति मांस का सेवन करता है, वह दूसरे जीवों के प्रति दया और करुणा का भाव नहीं रखता। कबीर जी ने यह भी स्पष्ट किया कि जो लोग मांसाहार को धार्मिक या सामाजिक अनुष्ठानों का हिस्सा मानते हैं, वे वास्तव में आध्यात्मिक ज्ञान से वंचित हैं और वे सच्चे धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में कबीर जी की वाणी हमें यह समझाने का प्रयास करती है कि सभी जीव ईश्वर की रचना हैं और उनके प्रति हिंसा करना ईश्वर के प्रति हिंसा करने के समान है। इसीलिए, कबीर जी ने अहिंसा, करुणा और शाकाहार का पालन करने की सलाह दी है, ताकि व्यक्ति अपने अंदर की करुणा को जागृत कर सके और ईश्वर के निकट पहुंच सके।
कबीर जी की वाणी आज भी हमें यह सिखाती है कि मांसाहार छोड़कर अहिंसा और करुणा के मार्ग पर चलना ही सच्ची भक्ति है। यह वाणी हमें आत्म-शुद्धि और परमात्मा की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।
नीचे श्री गुरु ग्रंथ साहिब में से कबीर जी की वाणी का उद्धरण दिया गया है जिसमें मांसाहार के खिलाफ स्पष्ट संदेश है:
1. कबीर जी की वाणी, श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1374:
ਕਬੀਰ ਜੋਰੀ ਕੀਏ ਜੁਲਮੁ ਹੈ ਕਹਤਾ ਨਾਉ ਹਲਾਲੁ ॥
ਦਫਤਰਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਸਿ ਗਾਫਲੁ ਕਿਆ ਜਵਾਬੁ ਦੁਅਾਲਿ ॥੧੮੭॥
कबीर जोरी किए जुलम है कहता नाउ हलालु।
दफतरि लिखिया पाइसि गाफलु क्या जवाबु दुअालि।।187।।
अनुवाद: कबीर जी कहते हैं कि किसी जीव को मारकर उसका मांस खाना एक बड़ा अन्याय है, फिर चाहे इसे 'हलाल' (धार्मिक रूप से सही) क्यों न कहा जाए। अंततः, ऐसे व्यक्ति को परमात्मा के दरबार में इस पाप का जवाब देना होगा।
2. कबीर जी की वाणी, श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1375:
ਕਬੀਰ ਭਾਂਗ ਮਾਛੁਲੀ ਸੁਰਾ ਪਾਨੀ ਜੋ ਜੋ ਪ੍ਰਾਨੀ ਖਾਂਹਿ ॥
ਤੀਰਥ ਬਰਤ ਨੇਮ ਕੀਏ ਤੇ ਸਭੈ ਰਸਾਤਲਿ ਜਾਹਿ ॥੨੩੩॥
कबीर भांग माछुली सुरा पानी जो जो प्रानी खांहि।
तीर्थ बरत नेम किए ते सभै रसातलि जाहि।।233।।
अनुवाद: कबीर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति भांग, मछली, शराब और अन्य नशे का सेवन करता है, वह चाहे कितने भी तीर्थ यात्रा, व्रत या अन्य धार्मिक अनुष्ठान क्यों न करे, वह आध्यात्मिक पतन की ओर ही जाता है।
ये उद्धरण स्पष्ट रूप से मांसाहार और अन्य नशे की वस्तुओं के सेवन के खिलाफ कबीर जी की दृढ़ता को दर्शाते हैं। कबीर जी ने सदैव अहिंसा, करुणा, और शुद्धता के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है।