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भविष्य पुराण में हज़रत मुहम्मद की कथा

पुराण / भविष्य पुराण में हज़रत मुहम्मद की कथा

भविष्य पुराण में हज़रत मुहम्मद की कथा

भविष्य पुराण में मुहम्मद और राजा भोज की कथा

भविष्य पुराण, हिन्दू धर्म के प्रमुख पुराणों में से एक है, जिसमें भविष्य की घटनाओं, धार्मिक शिक्षाओं और ऐतिहासिक कथाओं का विस्तृत विवरण मिलता है। इस पुराण में कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है, जिसमें मुहम्मद और राजा भोज की कथा भी शामिल है। यह कथा विशेष रूप से एक ऐतिहासिक संदर्भ और धार्मिक दृष्टिकोण को उजागर करती है।

भविष्य पुराण में कहा गया है कि मोहम्मद एक नीच व्यक्ति है जो एक भयानक धर्म का प्रचार कर रहा है और इस प्रकार जिस भूमि पर वह निवास करता है, उसे प्रदूषित कर रहा है। भगवान शिव राजा भोज से इस भूमि को छोड़ने के लिए कहते हैं।

भविष्य पुराण, प्रति सर्ग पर्व, खंड 3 अध्याय 3

कलियुगीय इतिहास समुच्चय का वर्णन

सूत जी बोले – शालीवाहन के वंश में दश राजाओं ने क्रमश: जन्म ग्रहणकर पाँच सौ वर्ष तक राज्य का उपभोग किया है। पश्चात वे स्वर्गगामी हो गए। उन लोगों के राजकाल में मर्यादा क्रमश: विलीन होती गयी, यहाँ तक कि दशवें राजा भोज के समय मर्यादा इस भूतल में नाममात्र रह गयी थी। उस बाली राजा ने मर्यादा को नष्ट-भ्रष्ट देखकर दिग्विजय के लिए प्रस्थान कर दिया, जिसमें दश सहस्त्र सेना के साथ कालिदास भी थे। अन्य ब्राह्मणों को भी साथ रखकर वह राजा सर्वप्रथम सिंधु नदी के पार पहुँचकर गांधार प्रदेश के म्लेच्छों और काश्मीर के (नारव) दुष्टों पर विजय प्राप्ति पूर्वक उनके कोशों (खजानों) को दण्डरूप में अपनाते हुए आगे बढ़ा। उसी समय “महामद” (मोहम्मद) नामक म्लेच्छों का आचार्य (गुरु) अपने शिष्यों समेत प्रचार कर रहा था। राजा भोज भी मरुस्थल प्रदेश में स्थित शिव जी की पुजा पंचगव्य समेत गंगाजल एवं चन्दनादि से सुसम्पन्न करके उनकी स्तुति करने लगे - । १-६

भोजराज बोले - मरुभूमि के निवासी गिरिजापति को नमस्कार है, जिन्होनें अत्यन्त माया के प्रवर्तक त्रिपुरासुर का नाश किया है, म्लेच्छों से रक्षित शुद्ध एवं सच्चिदानंद रूप है। मैं आपका सेवक हूँ, आपकी शरण में उपस्थित हूँ। ७-८

सूत जी बोले – इस स्तुति को सुनकर शिव जी ने राजा से कहा – भोजरज ! आप महाकालेश्वर स्थान के वाहिक नामक भूमि प्रदेश में जाइये, वह भूमि म्लेच्छों द्वारा दूषित हो रही है। उस भीषण वाहिक प्रान्त में आर्य धर्म नहीं है। यहाँ बलि दैत्य से प्रेषित यही त्रिपुरासुर पुनः आ गया है, जिस महामायावी को मैंने भस्म कर दिया था। वह अयोनि से उत्पन्न, श्रेष्ठ, एवं दैत्यवंश का वर्द्धक हैमहामद (मुहम्मद) उसका नाम है, जो सदैव पिशाच कर्म ही करता रहता है। अत: राजन तुम इस धूर्त एवं पिशाच के प्रदेश में मत ठहरो, मेरी कृपा से तुम्हारी शुद्धि हो जायगी। इसे सुनकर राजा अपने देश के लिए चल दिये। अपने शिष्यों समेत महामद भी सिंधु के तटपर आया। उस कुशल मायावी ने प्रेम भाव से राजा से कहा – महाराज ! आपके देव मेरे दास हैं, नृप ! देखिये ये मेरा उच्छिष्ट भोजन करते हैं। इसे देख सुनकर राजा को महान आश्चर्य हुआ। ९-१६ ।

और वह भी उस भीषण म्लेच्छ धर्म का अनुयायी होने के लिए सोचने लगा। उस समय कालिदास ने क्रुद्ध होकर महामद से कहा – धूर्त ! राजा को मोहित करने के लिए यह तुम्हारी माया है, अत: तुम ऐसे दुराचारी एवं वाहीक के अधमाधम का मैं वध कर दूँगा। इतना कहकर वह ब्राह्मण नवार्ण मंत्र का दश सहस्त्र जप करने के उपरांत उसके दशांश से आहुति-प्रदान करने लगा। उसी में वह भस्म होकर म्लेच्छों का देवता हो गया। पशचात उसके सभी शिष्यगण भयभीत होकर वाहीक देश चले गए। वहाँ अपने गुरु (मुहम्मद) का भस्म ले जाकर भूमि के मध्य (नीचे) स्थापित करके वे लोक शांत हो गए। उस स्थान को मदहीन पुर (मदीना) के नाम से स्थापित किया। वही उन लोगों का तीर्थ स्थान है। १७ – २२ ।

रात्रि के समय वह मायावी देव पिशाच रूप से भोज से कहने लगा – राजन ! तुम्हारा आर्यधर्म सभी धर्मों से उत्तम है। मैं तो ईशा की अज्ञावाश इस दारुण धर्म का प्रचार कर रहा हूँ – लिंग कटाना, शिखा (चोटी) हीन होकर केवल दाढ़ी रखना, बड़ी बड़ी बाते करना और सर्वभक्षी मेरे वर्ग के लोग होंगे। कौलतन्त्र के बिना ही वे पशुओं के भक्षण करेंगे, कुश के स्थान पर मूसल द्वारा अपने सभी संस्कार उनके होंगे इसलिए यह मुसलमान जाति धर्मदूषक कही जयगी। इस प्रकार का पैशाच धर्म मैं विस्तृत करूंगा इतना कहकर वह चला गया और राजा भी अपने घर लौट आये। तीनों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, एवं वैश्यों) में इन्होने स्वर्गप्रद संस्कृत वाणी और शूद्रों में प्राकृत भाषा स्थापित की। पश्चात पचास वर्ष राज करने के उपरांत स्वर्गगामी हो गये।  उन्होंने ही सर्व देवों की मर्यादा तथा विंध्य हिमालय के मध्य प्रदेश की पुण्य भूमि में आर्यावर्त नामक देश स्थापित किया।  वहां आर्य जाती के लोग रहते हैं और विंध्य के अंत में वर्णसंकर गण तथा सिंधुपार के मुसलमानों को भी स्थान दिया। ईसामसीह धर्म, वर्वर, तुष तथा सभी द्वीपों में देव एवं राजाओं की भाँति स्थापित हो गया।  २३ - ३२ ।

शब्दकोष

  • शालीवाहन - शालिवाहन प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध सम्राट थे। (Shalivahana was a legendary emperor of ancient India)
  • पंचगव्य - गऊ का दूध, गौ मूत्र, गाय का गोबर, गाय के दूध का घी और दहीं (Panchgavya represents milk, urine, dung, ghee, and curd, derived from cow)
  • प्रेषित - भेजा हुआ। (despatched, consigned)
  • अयोनि - अवैध रूप से पैदा।
  • नृप - राजा, नरपति, भूपाल। (king)
  • उच्छिष्ट - जूठा अन्न, जूठन, खाने से बचा हुआ। (eaten left overs)
  • म्लेच्छ - अनार्य, आर्य सदाचार का पालन न करनेवाला, नीच, पापी (जैसे—म्लेच्छ कहीं का)। (despicable, abase)
  • अधमाधम - नीच से नीच, महानीच। (Abject, despised)
  • दारुण - भयंकर, भीषण, घोर, निर्दय (Terrible, horrible)
  • सर्वभक्षी - सब कुछ खानेवाला। (omnivorous)
  • कुश - धार्मिक कृत्यों के उपयोग में आनेवाली एक घास। (grass)
  • वर्णसंकर - वह व्यक्ति या जाति जो दो भिन्न भिन्न जातियों के स्त्री पुरुष के संयोग से उत्पन्न हो। (cross bred)


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