चित्तशुद्धि तीर्थ को गंगा और अन्य तीर्थों से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यहाँ मानसिक शुद्धि प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसके लिए ज्ञानी पुरुषों के सत्संग की आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दान से भी चित्तशुद्धि प्राप्त करना कठिन होता है।
वसिष्ठ और विश्वामित्र, जो ब्रह्मा के पुत्र और प्रसिद्ध मुनि थे, के बीच विवाद हुआ, जिससे उन्हें महान कष्ट झेलना पड़ा। ब्रह्मा और अन्य देवताओं ने हस्तक्षेप कर उनका विवाद सुलझाया और दोनों मुनियों के बीच फिर से प्रेम स्थापित किया। इस घटना से यह प्रमाणित होता है कि चित्त की शुद्धि केवल साधना से ही संभव है और यह अत्यंत कठिन है। अतः, चित्तशुद्धि के बिना अन्य धार्मिक साधन विशेष प्रभावी नहीं हो सकते।
राजन् ! यह निश्चय है कि तीर्थ देहसम्बन्थी मैलको धोकर साफ कर देते हैं; किंतु मनके मैलको धो देनेके लिये उनमें शक्ति नहीं है।
चित्तशुद्धि तीर्थ गङ्गा आदि तीर्थो से भी अधिक पवित्र माना जाता है। यदि भाग्यवश चित्तशुद्धितीर्थ सुलभ हो जाय तो मानसिक मलके धुल जानेमें कोई संदेह नहीं।
परंतु राजन् ! इस चित्तशुद्धि तीर्थ को प्राप्त करने के लिये ज्ञानी पुरुषों के सत्सङ्ग की विशेष आवश्यकता है। वेद, शास्त्र, व्रत, तप, यज्ञ और दानसे चित्तशुद्धि तीर्थका प्राप्त होना बहुत कठिन है।
वसिष्ठजी ब्रह्माके पुत्र थे। उन्होंने वेद ओर विद्याका सम्यक् प्रकारसे अध्ययन किया था। गङ्गाके तटपर निवास करते थे। तथापि द्रेषके कारण विश्वामित्रके साथ उनका वैमनस्य हो गया और दोनोंने परस्पर शाप दे दिये थे और उनमें भयंकर युद्ध होने लगा था।
व्यासजी कहते हैं - राजन् ! दोनों मुनि आपसमें लड़.झगड़ रहे थे..यह देखकर लोकपितामह ब्रह्माजी वहाँ पधारे। परम दयालु सम्पूर्ण देवतागण भी ब्रह्माजीके साथ आये थे। पितामह ब्रह्माजीने वसिष्ठ ओर विश्वामित्र दोनों को समझा बुझाकर युद्धसे विरत किया।
साथ हीए वे दोनों मुनि आपसमें जो एक दूसरे को झाप दे चुके थेए उसका भी परिमार्जन कर दिया। तदनन्तर समस्त देवता अपने स्थानपर पधार गये । वसिष्ठ और विश्वामित्र भी अपने अपने आश्रमपर चले गये । ब्रह्माजीके उपदेशके प्रभावसे उन दोनों मुनियोंमें फिर प्रेमभाव हो गया।
राजन् ! इस प्रकार वसिष्ठ ओर विश्वामित्रका परस्पर युद्ध छिड़ गया थाए जिससे उन दोनोंको ही महान् कष्ट भोगना पड़ा। नरेन्द्र ! दानव, मानव एवं देवयोनिसे सम्बन्ध रखनेवाला कौन ऐसा व्यक्ति जगतमें है जो अहंकारपर विजय प्राप्त करके निरन्तर सुखसे समय व्यतीत करता हो। इससे यह सिद्ध हो रहा है कि श्रेष्ठ पुरुषों के लिये भी चित्तका शुद्ध होना बड़ा कठिन है।
अतः सम्यक् प्रकारसे चित्तको शुद्ध शुद्ध कर लेना ही परम आवश्यक है । अन्यथा तीर्थ, सत्य, दान तथा धर्मके जितने साधन हैं, वे सब के सब कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं कर सकते।
चित्तशुद्धि तीर्थ सभी तीर्थों से सर्वोत्तम और प्रभावशाली है। यहाँ तक कि गंगा जैसे प्रसिद्ध तीर्थ भी, चित्तशुद्धि की तुलना में अधूरे और बेकार प्रतीत होते हैं। चित्तशुद्धि तीर्थ केवल बाहरी शुद्धि नहीं, बल्कि आत्मा की गहरी और सच्ची शुद्धि की क्षमता रखता है। इस तीर्थ की प्राप्ति और प्रभाविता एक तत्त्वदर्शी संत के सत्संग और प्रवचन से होती है। इन संतों के ज्ञान और उपदेशों के माध्यम से मन की सारी अशुद्धियाँ दूर होती हैं और सच्चे आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। अतः किसी भी अन्य तीर्थ या धार्मिक क्रियाकलाप से अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक है कि चित्तशुद्धि पर ध्यान केंद्रित किया जाए। यह तीर्थ सभी अन्य तीर्थों से श्रेष्ठ है और आत्मा की पूर्ण शुद्धि सुनिश्चित करता है।